नई दिल्ली, 24 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों को सिर्फ आर्थिक आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर बनाने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधारों पर क्रीमी लेयर बनाई जा सकती है। यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने हरियाणा सरकार की साल 2016 में जारी एक अधिसूचना को खारिज करते हुए क्रीमी लेयर को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस ने यह कहते हुए हरियाणा सरकार की 17 अगस्त, 2016 की अधिसूचना को खारिज कर दिया, जिसमें सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर निर्धारित की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह अधिसूचना, इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ है। इंद्रा साहनी मामले में कोर्ट ने आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधारों पर क्रीमी लेयर बनाने के लिए कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इंद्रा साहनी मामले में तय किए गए मापदंडों के बावजूद हरियाणा सरकार ने 2016 की अपनी अधिसूचना में सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित किया। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसा कर हरियाणा राज्य ने भारी गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा कि सिर्फ इस आधार पर ही हरियाणा सरकार की साल 2016 की अधिसूचना को खारिज किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर इंद्रा साहनी मामले में तय किए गए सिद्धांतों और 2016 के अधिनियम की धारा-5(2) के मानदंडों के आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित करने के लिए कहा है। अदालत ने यह फैसला पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा (हरियाणा) और अन्य की ओर से दाखिल याचिकाओं पर दिया है। इन याचिकाओं में हरियाणा राज्य की 2016 और 2018 की अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 2016 और 2018 की अधिसूचनाओं के आधार पर राज्य में जो नौकरियां या शैक्षणिक संस्थानों में जो दाखिले हुए हैं, उनमें छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।
ज्ञात रहे कि हरियाणा सरकार की 2016 की अधिसूचना में ओबीसी में सालाना छह लाख से अधिक आय वाले लोगों को 'क्रीमी लेयर' करार दिया गया था और उन्हें आरक्षण के लाभ से दूर कर दिया गया था। इसके अलावा नॉन 'क्रीमी लेयर' में भी उप वर्गीकरण किया गया था। इस नीति के तहत तीन लाख से कम आय वालों का एक समूह बनाया गया था और दूसरा समूह तीन से छह लाख के बीच वाले लोगों का तैयार किया गया था।
इसके तहत तीन लाख तक की आय वाले वर्ग के व्यक्तियों को वरीयता दी गई थी। इसके तहत नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में होने वाले दाखिलों में सबसे पहले तीन लाख से कम आय वाले लोगों को आरक्षण का लाभ मिलने का प्रावधान था। बाकी बचा कोटा तीन से छह लाख की आय वालों के लिए था। इसके बचाव में हरियाणा सरकार ने दलील दी थी कि अधिसूचना जारी करने में इंद्रा साहनी के फैसले का पालन किया गया था। हरियाणा सरकार की यह भी दलील थी कि अधिसूचना जारी करने से पहले कमिश्नरों की ओर से जिलेवार ओबीसी वर्ग के लोगों में सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करके आंकड़े जुटाए गए थे।
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